बरसात (Barsat): तपिश से झुलसी धरा पर जब बरसात की बूंदें पड़ती हैं , तो निर्जीव – सी हुई धरा सजीव हो उठती है । प्रकृति का सौंदर्य निखर जाता है । समस्त जीव – प्राणी नव- तरंग से भर जाते हैं ।
तन – मन खिलखिला उठता है । रोम- रोम आनन्दित हो जाता है । समूची कायनात एक सरस रोमांच से लबालब हो उठती है । मानव मन एक अदद ऊर्जा से नाच उठता है ।
क्योंकि एक तपन के बाद जब बारिश की फुहारें जो सुकून देती हैं , उसका नजारा उतना ब्यान नहीं किया जा सकता , जितना महसूस हो सकता है । यही कारण है कि मानसून की बरसात का बड़ी बेसब्री से इंतजार किया जाता है ।
बरसात (Barsat) के बारे में कुछ और बातें
मई – जून की गर्म हवाएं और लू के थपेड़े जीवन को बेहाल कर जाते हैं , तो हमें बस , मानसून की बरसात (monsoon ki barsat) का सहारा दिखता है । बेहाल हुए तन – मन फिर बरसात की विरह में तपने लग जाते हैं ।
ऐसे हालातों में कहीं दूर भी बरसात हो जाती है , तो वह भी एक उम्मीद की किरण मालूम होती है । और जब तपे हुए तन – मन पर बूंदें बरसती हैं , तो जरा – जर्रा उल्लासित हो जाता है ।
बात है बरसात (Barsat) की और उसके नजारे की । यह उपरोक्त नजारा तो बरसात के लौकिक सुकून से जुड़ा है , लेकिन इससे जुदा भी बरसात का एक स्वरूप है , जो अलौकिक ताल्लुक सुख से रखता है ।
मानसूनी बरसात (Barsat) से हम मानसिक सुख महसूस करते हैं , लेकिन अलौकिक बरसात का आत्मिक सुख इससे कई गुणा लज्जत देने वाला होता है और जिसे महसूस करना ‘ खाला जी का बाड़ा ‘ भी नहीं है ।
मगर यह भी नहीं कह सकते कि ऐसा होना असंभव है । ऐसी बरसात और उसका नजारा एक गुरु – सतगुरु , कामिल – मुर्शिद की सोहबत से ही पाया जा सकता है ।
इसके बिना तो , इस बारे में सोचा भी नहीं जा सकता । क्योंकि केवल सतगुरु ही जीवात्मा पर अपने कर्म की बरसात करता है । जब यह बरसात होती है , तो स्वयं उस रूह के पास प्रकट हो जाता है और उसे अपने अलौकिक नजारों से सराबोर कर देता है ।
लेकिन इसके लिए उसको भी एक बरसात की बाट रहती है । वो बरसात है ‘ तरी का रास्ता ‘ , जिस पर चलते हुए रूह उसके प्यार में तड़प उठती है । उसकी विरह में व्याकुल हो जाती है ।
इस हालत में उसके हृदय की वेदना अपने सतगुरु को पुकार उठती है । फिर करूणामयी , ममतामयी सतगुरु अपनी उस जीवात्मा की ओर दौड़े चले आते हैं , क्योंकि उसकी तड़प , विरह में ऐसी ताकत होती है ।
विरह में आसक्त अपने भक्त की ओर आने में भगवान क्षण भी विलम्ब नहीं करते । जैसे कि संत कबीर जी ने कहा है
विरह जलन्ति देखि कर , साई आये धाय
प्रेम बूंद से छिरकि के , जलती लई बुझाय ।।
उपरोक्त शब्दों में संत कबीर जी एक विरहन जीवात्मा की स्थिति का अवलोकन करते हैं , जिसकी तपिश को , जिसके विरह को भगवान अपने प्यार की बरसात से असीम ठंडक प्रदान करते हैं ।
इसमें जीवात्मा के विशेष गुण ‘ विरह ‘ की प्रधानता ही दृष्टिगोचर है । ‘ विरह ‘ कह लें या ‘ तरी का रास्ता ‘ बात एक ही है अपने परमपिता परमात्मा को हासिल करने के लिए उसका दीदार पाने के लिए ‘ विरह ‘ का होना जरूरी है ।
जिस तन में ‘ विरह ‘ पैदा नहीं होती , उसे शेख फरीद जी अपने शब्दों के द्वारा एक लाश ही कहते हैं । अर्थात् वो जिस्म मुर्दा है शमशान है , जैसे-
बिरहा बिरहा आखीऐ बिरहा तू सुलतानु ।।
फरीदा जितु तनि बिरहु न ऊपजै सो तनु जाणु मसानु ।
सार यह है कि विरह को अध्यात्म में बहुत उच्च कोटि का दर्जा दिया गया है । विरह के बिना भक्ति मार्ग पर शिखरों तक पहुंचना मुश्किल है इस मार्ग का शिखर परमात्मा को पा लेना ही है ।
जब एक भक्त विरह को अंकुर कर लेता है , तो फिर उसका यह मार्ग सरल हो जाता है । अत : गुरु – सतगुरु के प्यार की बरसात उस जीवात्मा को शीघ नसीब होती है , जो उसके प्यार में , वैराग्य में , तड़पती है ।
प्रेम की मंजिल पर पहुंचने का यह सीधा रास्ता है , लेकिन उसके प्यार की तपिश में पहले तपना जरूरी है अर्थात् परमात्मा को पाने के लिए वैराग्यमयी अवस्था का पैदा होना लाजिमी है
जब उसके प्यार में झमाझम आंसू बहते हैं , तो उसके रहमो – करम की बरसात (Barsat) भी फिर झमाझम होती है ।
जिस प्रकार कोई मां – बाप अपने किसी दूर गए पुत्र की फिक्र में रहता है । और रब्ब न करे कि उसके साथ किसी अनहोनी होने का समाचार मिलने पर , जैसी तड़प पैदा होती है , तन – मन रो पड़ता है ,
उस तड़प के मुकाबले अगर परमात्मा के लिए मात्र 5-7 प्रतिशत भी तड़प बना ली जाए , तो हो नहीं सकता कि परमात्मा के दर्श – दीदार न हों । कोई ऐसा करके तो देखे ।
कोई इस प्रकार तड़पे तो सही , वो अल्लाह , भगवान जरूर दर्शन देंगे । विषय बरसात है न ! इसलिए बरसात से जुड़ा ही वर्णन किया जा रहा है ।
अगर कोई जीवात्मा उसकी बरसात चाहती है , तो उसे भी बरसात पैदा करनी पड़ेगी , क्योंकि परमात्मा भी बरसात का चाहवान है ।
उसे खुश्क भक्ति – इबादत रिझा नहीं सकती । ( भजनों की किताब ) में संग्रहित एक कव्वाली के द्वारा यूं प्रकट किया है :
उसको बरसात ही सुहानी है ,
तेरी आंखों में खुश्क पानी है ।
तू उसका दामन भिगो नहीं सकता ,
उसका दीदार हो नहीं सकता ।
स्पष्ट है कि जब तक वैराग की बही गंगा से उसका दामन भीग नही जाता , उसे देखा नही जा सकता । और जो भी तरी ‘ के रास्ते इस मंजिल की ओर गए , उनको मुकामे हक का साम्राज्य आसानी से मिल गया ।
उसके दामन को जिसने भिगो दिया , उसका आंगन ईलाही बरसात की फुहारों से तर – ब – तर हो गया । उस बरसात में आनन्द – विभोर हुई रूह की मस्ती अनन्त है ।
इस खुशनुमाई के सामने मानसूनी बरसात की सुहानी छटा तुच्छ है । फिर भी हमें मानसून की इस बरसात का बड़ा इंतजार रहता है , जो कि लौकिक आनन्द तक सीमित है ।
तो क्यों न उस बरसात के लिए भी चाह पैदा की जाए , जो अलौकिक है , परमानान्दित है । जरूरी नहीं कि मानसून की यह बरसात सुकून ही देने वाली हो कहीं राहत के साथ यह आफत लाने वाली भी सिद्ध हो जाती है ।
मगर उस ईलाही नूर की बरसात में आफत का कहीं नामो निशान नहीं , बल्कि वो बरसात तो खुशियां ही खुशियां लाने वाली है परम पिता परमात्मा के प्यार मे रमी हुई जो रुह इस बरसात को पा लेती है उसके लिए हर घड़ी बहार का मौसम छाया रहता है ।