बसंत पंचमी (Vasan Pnachmi): वसंत को ऋतुओं का राजा अर्थात सर्वश्रेष्ठ ऋतु माना गया है । इस समय पंच – तत्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं । पंच तत्य- जल , वायु , धरती , अग्नि , और आकाश सभी अपना मोहक रूप दिखाते है ।और इसे बसंत पंचमी (Vasan Pnachmi) के रूप में मनाया जाता है।
आकाश स्वच्छ है , वायु सुहावनी है , अग्नि ( सूर्य ) रुचिकर है तो जल पीयूष के समान सुखदाता और धरती उसका तो कहना ही क्या वह मानों साकार सौंदर्य का दर्शन कराने वाली प्रतीत होती है ।
ठंड से ठिठुरे विहंग अब उड़ने का बहाना ढूंढते हैं तो किसान लहलहाती जौ की बालियों और सरसों के फूलों को देखकर नहीं अधाता ।
धनी जहां प्रकृति के नव – सौंदर्य को देखने की लालसा प्रकट करने लगते हैं तो निधन शिशिर की प्रताड़ना से मुक्त होने के सुख की अनुभूति करने लगते हैं । सच ! प्रकृति तो मानों उन्मादी हो जाती है । हो भी क्यों ना ! पुनर्जन्म जो हो जाता है ।
श्रावण की पनपी हरियाली शरद के बाद हेमन्त और शिशिर में वृद्धा के समान हो जाती है , तब बसंत उसका सौन्दर्य लौटा देता है । नवगात , नवपल्ल्व , नवकुसुम के साथ नवगंध का उपहार देकर विलक्षणा बना देता है ।
बसंत ऋतु क्यों मनाई जाती है ?
प्राचीन भारत में पूरे वर्ष को जिन छह मौसमों में बांटा जाता था , उनमें बसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था । जब फूलों पर बहार आ जाती , खेतों में सरसों का सोना चमकने लगता , जौ और गेहूं की बालियां खिलने लगतीं , आमों पर बौर आ जाता है और हर तरफ रंग – बिरंगी तितलियां मधु मक्खियां व भंवरे मंडराने लगते है , इस मौसम में फूलों की सगंधि व मधु का चहुं तरफ अम्बर रहता है ।
तब बसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पांचवां दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था बसंत पंचमी मूलरूप से प्रकृति का उत्सव है । इसे आनंद का पर्व भी कहा जाता है ।
इस दिन से धार्मिक , प्राकृतिक और सामाजिक जीवन के ब्रजवासि उत्सवम जहां कामों में बदलाव आने लगता है । लेकिन सिर्फ प्रकृति का ही नहीं , यह अध्यात्मिक दृष्टि से अपने को समझने , संकल्प लेने और उसके लिए साधना आरंभ करने का पर्व भी है ।
बसत ऋतु आते ही प्रकृति का कण – कण खिल उठता है । मानव तो क्या पशु – पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं । हर दिन नयाँ उमंग से सूर्यादय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है यूँ तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है , पर बसंत पंचमी भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करती है
बसंत पंचमी (Vasan Pnachmi) कब मनाई जाती है ?
बसंत पंचमी फरबरी के महीने में 16 तारीख़ को मनाई जाती है
बसंत पंचमी (Vasan Pnachmi) की कुछ खास बातें।
सरसों का खेत व पीला रंग :
यह रंग भारतीय संस्कृति का शुभ रंग है । वसंत पंचमी (Vasan Pnachmi) पर न केवल पीले रंग के वस्त्र पहने जाते हैं , अपितु खाद्य पदार्थों में भी पीले चावल , पीले लाडू य केसर युक्त खीर का उपयोग किया जाता है , जिसे बच्चे तथा बड़े – बूढ़े प्रकृति खेतों को पीले – सुनहरे रंग से सजा देती है , तो दूसरी ओर घर – घर में सभी पसंद करते है । अतः इस दिन सब कुछ पीला दिखाई देता है और लोग के परिधान भी पीले दृष्टिगोचर होते हैं ।
पतंगबाजी :
बच्चे व किशोर बसंत पंचमी (Vasan Pnachmi) का बड़ी उत्सुकता से इंतजार करते हैं । आखिर , उन्हें पतंग जो उड़ानी है । वे सभी घर की छतों या खुले स्थानों पर एकलित होते हैं और तब शुरू होती है पतंगवाजी की जंग ।
कोशिश होती है प्रतिस्पर्धा डोर को काटने की जब पतंग कटती है , तो उसे पकड़ने की होड़ मचती इस भागम – भाग में सारा माहौल उत्साहित हो उठता है जिस तरह से पतंग आसमान की ऊंचाइयों को छूती है उसी तरह से बच्चे शिक्षा के माध्यम से जीवन में उन्नति के शिखर पर पहुंच सकते हैं
मथुरा का मेला :
मार्ग शुक्ल 5 को बसंत पंचमी (Vasan Pnachmi) के दिन मथुरा में मेला लगता है । सभी जगह उत्सव होने लगते है । वृन्दावन में बसंती कक्ष खुलता है । सभी लोग उल्लास के साथ बसंत के राग गाते हैं और बसंत पंचमी से ही होली गान शुरू हो जाता है ।
ब्रज का यह परम्परागत उत्सव है । पूरा महीना बसंती (Vasan Pnachmi) रंग में रंगे होली की तैयारियों में लगे रहे हैं । पूरे उल्लास और उत्साह के साथ होराका उत्सव मनाकर बसंत पंचमी की विदाई होती है इस प्रकार बसंत मी अजवासियों के लिए विशेष महत्व होता है ।
जहां एक ओर बसंत ऋतु हमारे मन में उल्लास का संचार करती है वहीं दूसरी ओर यह हमें उन वीरों का भी स्मरण कराती है जिन्होंने देश और धर्म के लिए अपने प्राणों की बलि दे दी । आइये , इन्हें नमन करते हुए हम भी वसंत के उत्साह में सम्मिलित हों ।
बसंत ऋतु की कविताएँ | Vasan Pnachmi kavita
रूपधरा का निखरा – निखरा उजला – उजला
महका – महका तन – मन हुलसाया है ,
अरे देखो तो अंगना में उसके ,
ऋतुराज बसंत आया है ।।
ओढ़ चुनरिया पीली – पीली
झूले सरसों हर्षाली – गर्वीली
आई बसंती हवा उन्मादी
नटखट प्रपंच करे उस्तादी
डाल – डाल को खूब छकाया है ,
ऋतुराज बसंत आया है ।
पीत पैरहन धार चली तितलियां
ले हिलोरें हैं मचलियां
भौरों से खेलें आंख – मिचौली
अमित आमोद करें ठिठोली
केसर , कमल मन भाया है
ऋतुराज बसंत आया है
कानन – कानन निकली बात
तरु -तरुवर मिली सौगात
लदे बाग हैं आम – ओ – खास
देख बौर गए भौरे जाग
राग बसंती उन गाया है
ऋतुराज बसंत आया है ।
गेहूं की मासूम बालियां
पा तरुणाई हुई मतवालियां
जौ , चनों को चढ़ी लालियां
खेतों में रोणक शुरू हुई रखवालियां
रबी ने रब की रंगत को पाया है
ऋतुराज बसंत आया है ।
फूल खिले हैं उपवन में
चम्पा – चमेली अपनी धुन में
लाजवंती – वैजंती हैं टहक रही
गौरैया , बुलबुल हैं चहक रही
कोयल रानी हुड़दंग मचाया
ऋतुराज बसंत आया है ।
इधर – उधर से उड़े पतंग
देखें किसकी , किससे कटे पतंग
हास – परिहास , उमंग – तरंग
चहुं ओर मधु है मधुरम
कुदरत ने यौवन पाया है ,
ऋतुराज बसंत आया है ।
शीत निबाह के रीत चली
गा मधुमास के गीत चली
ऊषाकाल की उष्मा आई
ठिठुरन को देने सब्ज विदाई
मौजी मौसम संग लाया है
ऋतुराज बसंत आया है ।