होली पर निबंध | Essay on Holi in Hindi

होली पर निबंध (Essay on Holi in hindi) होली आपसी प्रेम , सौहार्द और भाईचारे का प्रतीक तथा उमंग , उल्लास से भरा ऐसा पर्व है जो भेद में अभेद के दर्शन कराता है ।

होली पर निबंध|Essay on Holi in Hindi

होली पर निबंध

वस्तुतः इसका प्रयोजन रहा है कि सालभर तक हम अपने – अपने कार्यों में व्यस्त रहते हुए खुलकर आपस में मिलने – जुलने का अवसर ही नहीं निकाल पाते ।

होली के सुअवसर पर उमंग व उत्साह के साथ मिलते , परस्पर अबीर – गुलाल उड़ाते हुए विनोदपूर्ण व्यवहार करते हैं लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इसका स्वरूप बदलता जा रहा है

होली से जुडी और भी दिलचस्प बातें | Essay on Holi in hindi

होली पर निबंध

Essay on Holi in hindi

पहले रंग बरसे …. ‘ . ‘ होली है होली , मस्तों को गुलाल मलते युवको की टोली , कभी लोगों को तहजही आकर्षित कर लेता था ,

पर अब लोग इस टोली के नजदीक जाने से कतराने लगे परंपरा तो बरसो से चली आ रही है , लेकिन होली के नाम पर नशा करके आपसी रंजिश और लड़ाई – झगड़े का माहौल तैयार करना कहा तक उचित है ,

जोकि आज ऐसा देखाव सुना पहले लोग अपने अथाह प्रेम और वेली …… ढोल की थाप पर गीत गाते , अबीर -आजकल ज्यादातर हुड़दगी युवकों की टोलियां हर नुक्कड़ पर दिखाई देती है ।

निस्संदेह होली में मित्रो , रिश्तेदारों के बीच छेड़छाड़ की जाता है । सद्भावनाओं का इजहार आपस में रंग , अबीर , गुलाल आदि मल कर करते थे , पर अब कुछ ऐसे लोग भी हैं ,

जो होली खेलने के बहाने स्त्रियों से अभद्र व्यवहार तथा छेड़छाड़ करते हैं । कई लोग होली ‘ की किसी पुरानी दुश्मनी या बदला लेने का अच्छा अवसर समझते हैं

परिणामस्वरूप हंसी – खुशी से भरे इस त्यौहार का माहौल आपसी मन – मुटाव , रंजिश और अदावत में बदल जाता है । होली का यह उत्सव आत्मविस्तार का एक रूप है ।

आप वसंत ऋतु में प्रकृति को नए – नए रूपों में संजते – संवरते देखते हैं । वसंत के पहले पतझड़ की ऋतु होती है पतझड़ में पते झड़ जाते और लगता है कि वनस्पतियां सूख गई हैं

लेकिन प्रकृति मानो अपनी सारी जीवनी , हरियाली बाहर से अंदर समेट लेती है , संचित कर लेती है और ऊष्मा पाते ही नए वेग से अरूणिमा और हरीतिमा किसलयों में फूट पड़ती है ।

होली का स्वास्थ्य पर कुप्रभावः

होली अच्छे स्वास्थ्य को तभी प्रोत्साहित करेगी , जब होली खेलने के लिए प्रयोग किए जाने वाले रंग और गुलाल प्राकृतिक होंगे । आज के आधुनिक दौर में प्राकृतिक रंग – गुलालों का प्रयोग नगण्य हो गया है ।

ज्यादातर रासायनिक पदार्थों से निर्मित रंग – गुलालों का ही प्रयोग किया जा रहा है । ऐसे रंगों से स्वास्थ्य पर कुप्रभाव की संभावना बढ़ जाती है ।

गांव में होली कैसे मनाते हैं?

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गांव की होली का एक रूप ऐसा भी था जो थोड़ा क्रूर था । होली में कमजोर या निर्बल व्यक्ति को गाली , रंग और नाना प्रकार के कीचड़ – कबाड़ से सराबोर कर दिया जाता ।

उसके घर को धूल – कीचड़ और नाना प्रकार की गंदगी से पाट दिया जाता । वह चीखता चिल्लाता रहता । लोग उसकी करुण स्थिति पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देते थे ,

बल्कि उल्लसित होते , मानो किसी को शारीरिक व मानसिक यंत्राणा देना भी होली का कोई कर्मकांड हो होली में टोका – टोकी करना अच्छा नहीं माना जाता । कोई बुरा न माने होली है ।

होली का मजा किरकिरा न होने दें

Essay on Holi in hindi

उत्तर – भारत में होली का त्यौहार बड़ी उत्सुकता और खुशी से मनाया जाता है । होली का त्यौहार रंगों के त्यौहार के रूप में जाना जाता है जिसका इंतजार सभी बेसब्री से करते हैं ।

इस त्यौहार को जितने लोग मिलकर मनाएं , उतना ही आनंद महसूस होता है । कभी – कभी पहले मन नहीं करता कि रंगों से स्वयं गीला हुआ जाए । बस देखकर मजा लेने की इच्छा होती है ।

पर जब विवश होकर खेलना पड़े तो मन और खेलने को करता है । होली का त्यौहार कुछ संभल कर और समझदारी से खेला जाए तो मजा बढ़ जाता है ।

यदि इसे गंदे रूप में , जैसे कीचड़ , ग्रीस , गुब्बारे आदि से खेलना तो त्यौहार का मजा किरकिरा करना है ।

आइए देखें , कि साल में एक बार आने वाला त्यौहार जिसका इंतजार बच्चों , किशोरों और बड़ों को होता है , उसे और रंगीन कैसे बनाया जाये ।

होली का त्योहार और भी रंगीन बनाने के तरीके

Essay on Holi in hindi

1) रंग व गुलाल बाजार से पहले ही मंगा कर रख लेना चाहिए ताकि कोई आपके घर होली मिलन के लिए आए , तो आप बिना रंग के शर्मिदा महसूस न करें ।

गुलाल प्रातः ही खोलकर प्लेटों में डालकर मुख्य द्वार के पास ही रखें , ताकि इधर – उधर रंग ढूंढना न पड़े ।

2) बच्चों को गुब्बारों के साथ होली खेलने के लिए निरुत्साहित करें । गुब्बारों से खेलने पर दूसरों को चोट लग सकती है , जिससे त्यौहार का मजा किरकिरा भी हो सकता है ।

3) बच्चों को गुलाल के रंगों के अलग से पैकेट दे दें ताकि वे अपनी मस्ती पूरी ले सकें और बार – बार आपको परेशान न करें ।

4) बच्चों को गुब्बारों के स्थान पर पिचकारी से खेलने के लिए प्रेरित करें । उसके लिए एक रात पहले टेसू के फूल बड़ी बाल्टी या टब में भिगो दें । इन फूलों से बना ( प्राकृतिक रंग ) पीला रंग स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है ।

5) होली से एक दिन पूर्व ही कपड़ों का चयन कर निकाल कर रख लें ताकि सुबह उठते ही या रात्रि में पहले से उन कपड़ों को पहन लिया जा सके ।

वस्त्र ऐसे हों , जो अधिक से अधिक त्वचा को ढक कर रखें । थोड़े मोटे वस्त्र ही पहनें । पारदर्शी वस्त्रों को न पहनें । बच्चों हेतु दो – तीन जोड़ी वस्त्र निकालें ।

6) जो वस्त्र होली खेलने के उपरान्त पहनने हों , उन्हें भी पहले निकाल लें ताकि गीले रंगों वाले वस्त्रों और हाथों से अलमारी को न खोलना पड़े । साफ- सुथरे कपड़े भी उन हाथों से खराब हो सकते हैं ।

7) अपनी त्वचा को रंगों से बचा कर रखने हेतु सारी त्वचा और बालों पर तेल लगा लें । बच्चों को भी तेल अच्छी तरह से चुपड़ दें ।

8) होली खुले आंगन में खेलें तो अधिक मज़ा आएगा । बड़े नगरों में आंग्न न के बराबर होते हैं । ऐसे में छत पर भी होली खेली जा सकती है , पर ध्यान रखें कि छत के चारों ओर ऊंची दीवार ( जंगला ) होनी चाहिए ।

9) घर पर आने वाले अतिथियों हेतु मीठा , नमकीन , गुजिया का प्रबन्ध पहले ही कर लें । चाय हेतु पर्याप्त दूध , चीनी , चाय – पत्ती का भी प्रबंध कर लें ।

आप पेपर प्लेट और फोम के डिस्पोजेबल गिलास रखें , ताकि बर्तनों की सफाई के लिए परेशानी न उठानी पड़े । बड़े गार्बेज बैग रखें ताकि प्रयोग में लाई हुई प्लेटें और गिलास इधर उधर न फैलें ।

होली के रंगो को कैसे छुड़ाएं ?

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होली रंगों का साया है , जिसमें हर तरह की मौज – मस्ती की पूरी छूट रहती है । हर कोई रंगों से पूरी तरह सराबोर हो जाता है

लेकिन मौज – मस्ती के यही रंग हमारे लिए तब परेशानी का कारण बन जाते हैं, जब होली खेलने के बाद अपने आपको हम आईने के सामने निहारने की कोशिश करते हैं ।

कच्चे – पक्के तरह – तरह के रंग उस समय हमें मुंह चिड़ाते हुए नजर आते हैं और इन रंगों से छुटकारा अत्यंत कठिन प्रतीत होने लगता है ।

आपकी ये मुश्किलें काफी आसान हो सकती हैं । यदि होली खेलने के पहले और होली खेलने के बाद इन उपायों को ध्यान में रखें और अमल में लायें।

होली खेलने के पहले ही अगर अपने चेहरे एवं हाथ – पैरों पर कोई कोल्ड क्रीम अथवा सरसों या नारियल का तेल अच्छी तरह मल लें तो किसी भी प्रकार का रंग आसानी से छूट जाएगा और रंगों में मिले हानिकारक रसायनों से त्वचा भी सुरक्षित रहेगी ।

2) शरीर का रंग छुड़ाने के पहले क्लीजिंग – मिल्क से त्वचा को साफ कर लें ।

3) बालों में कोई भी हेयर आयल अच्छी तरह से लगा लें ताकि रंग छुड़ाने में सुविधा रहे । होली खेलने के बाद बालों को शैम्पू करके रंग निकाल दें ।

4) रंग निकालने के लिए ठंडे पानी का प्रयोग करें । गर्म पानी का प्रयोग न करें क्योंकि गर्म पानी के संपर्क में आकर रंग और पक्के हो जाते हैं और आसानी से नहीं छूटते ।

5) रंग निकालने के लिए उबटन का प्रयोग भी सुरक्षित रहता है । एक चम्मच बेसन या आटे में एक चम्मच तेल के अनुपात में उबटन बनाकर इसे रंग लगे स्थानों पर लगायें । यह क्रिया कई बार करने पर रंग पूरी तरह से छूट जाता है और चेहरे पर चमक आ जाती है ।

6) रंग निकालने के लिए किसी डिटर्जेंट की बजाय सिर्फ नहाने वाले साबुन का प्रयोग करें । साबुन के झाग को किसी कपड़े से पोछते जाएं ताकि रंग कपड़े पर उतरता जाए ।

7) चेहरे पर यदि पालिश या पेंट लग गया हो तो मिट्टी के तेल में रुई को भिगोकर हल्के हाथों से त्वचा पर मलें । फिर साबुन – पानी से साफ कर लें ।

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