बदलती जीवनशैली से दूसरी बीमारियों के साथ – साथ किडनी यानि गुर्दे खराब होने के मामले भी बढ़ रहे हैं । एक बार गुर्दे की बीमारी हो गई तो ज्यादातर लोग जिंदगी से हताश हो जाते हैं ,
मगर सच यह है कि अगर सही से इलाज करवाया जाए व पूरी तरह से सावधानियां बरती जाएं तो किडनी खराब होने के बावजूद भी मरीज लंबी व ठीक – ठाक जिंदगी जी सकता है ।
शुरूआत में ही गुर्दे की बीमारी को पहचानना बहुत जरुरी है क्योंकि ज्यादातर मामलों में यह एक लाईलाज बीमारी बन सकती है ।
अगर आप स्वयं को गुर्दे की बीमारी से बचाना चाहते हैं तो कुछ आवश्यक बातों पर ध्यान दें । यदि गुर्दे की बीमारी जल्द पकड़ में आ जाए तो इसका इलाज बहुत प्रभावी ढंग से किया जा सकता है ।
गुर्दे की बीमारी से बचाव के संबंध में हमने शाह सतनाम जी स्पेशलिटी अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक से बात की उन्होंने बताया कि गुर्दे हमारे शरीर का महत्वपूर्ण अंग हैं ।
यह बीन ( सेम ) आकार का अंग है जिसका कार्य शरीर से अपशिष्ट वेस्ट पदार्थों को बाहर निकालना है । ।
10 में एक व्यक्ति किडनी पीड़ितः
दुनियाभर के दस में से एक व्यक्ति किसी न किसी रूप में किडनी यानी गुर्दे की बीमारी या विकारों से ग्रस्त है । किडनी के ये विकार ही अंत में गुर्दे की बीमारी ( किडनी फेलियर ) का कारण बनते है ।
देश में लगभग 10 करोड़ लोग किसी न किसी रूप से किडनी से संबंधित बीमारियों या विकारों से ग्रस्त हैं ।
इन रोगों में एक्यूट किडनी इंजरी के मामले चिंताजनक रूप से बढ़ते जा रहे हैं , लेकिन कुछ सजगताएं बरतकर इस रोग की रोकथाम संभव है
क्या काम करते हैं गुर्देः
• अतिरिक्त जल तथा अपशिष्ट उत्पादों से छुटकारा दिलाते हैं ।
• शरीर के लिए आवश्यक द्रव तथा रसायनों को समायोजित करते हैं ।
• रक्तचाप को नियंत्रित करते हैं हार्मोन्स को नियंत्रित करते हैं ।
• शरीर में नए लाल रक्त कण ( कोषाणु ) बनाने वाले हार्मोन्स को नियंत्रित करते हैं
गुर्दे की बीमारी :
गुर्दो की बीमारी को ‘ रिनल फेलियर ‘ भी कहा जाता है । गुर्दे की बीमारी होने पर ये ( गुर्दे ) शरीर के अतिरिक्त द्रव तथा अपशिष्ट ( वेस्ट ) से छुटकारा नहीं पा सकते । गुर्दे खराब होने की दो किस्में हैं , ( 1 ) गुर्दो की तीक्षण ( एक्यूट ) खराबी ( 2 ) गुदों की दीर्घकालिक ( क्रोनिक ) खराबी ।
गुर्दो की तीक्षण ( एक्यूट ) खराबी :
गुर्दो की तीक्षण खराबी में गुर्दे अचानक काम करना बंद कर देते हैं जो कुछ घंटों अथवा दिनों में घटित हो सकता है ।
ये हैं कारण :
• गंभीर संक्रमण
• गंभीर रूप से जल जाना
• गुर्यों में चोट अथवा गुर्यों में रक्त बहाव में रुकावट
• शराब ( एल्कोहल ) आदि नशीले पदार्थों का सेवन गुर्दो में भारी खराबी पैदा करता है ।
• निम्न रक्तचाप
• मूत्रमार्ग में रुकावट . हृदय रोग
बीमारी की पहचान तथा उपचार किए जाने पर गुर्दे अक्सर पुनः बेहतर कार्य करने लगते हैं । जब तक गुर्दे काम नहीं करते तब तक शरीर से अपशिष्ट को हटाने में सहायता के लिए डायलिसिस की आवश्यकता पड़ सकती है ।
गुर्दो की दीर्घकालिक क्रोनिक ) खराबी :-
गुर्दो की दीर्घकालिक खराबी तब होती है जब गुर्दे धीरे – धीरे अपना कार्य करना बंद कर देते हैं । यह जीवनभर चलने वाला रोग है और इसमें सुधार नहीं हो सकता ।
ये हैं कारण
• कुछ रोग जैसे मधुमेह ( डाइविटिज ) रक्तचाप तथा हृदय रोग की बीमारी
• गुर्दे में पथरी
• मूत्र मार्ग में रुकावट अथवा समस्याएं
• चर्म रोग , एक ऑटो इम्यून रोग
• दीर्घकालिक संक्रमण
• स्कलेरोडर्मा , एक त्वचा तथा सबद्ध ऊतक खराबी
गुर्दो के काम बंद करने पर शरीर में निम्न लक्षण उत्पन्न होते है.
• शरीर में सूजन ( जैसे हाथो , चेहरे तथा पैरों में सूजन )
• रक्तचाप का बढ़ना
• कमजोरी , मिचली और उल्टी का महसूस होना
• पेशाब ( यूरिन ) करने की आवृति में बदलाव
• सांस लेने में दिक्कत
• शरीर में रक्त की कमी का होना
• किन्हीं गंभीर स्थितियों में पीड़ित व्यक्ति कौमा या बेहोशी में जा सकता है ।
उपर्युक्त लक्षणों में से कई लक्षण बहुत अस्पष्ट होते हैं ये लक्षण इतनी धीमी गति से बढ़ते हैं कि रोगी अक्सर इनकी तरफ ध्यान नहीं दे पाता और इसीलिए सही समय पर समुचित इलाज नहीं हो पाता ।
गुर्दे की जांच व सावधानियां
क्रोनिक किडनी डिजीज का पता ग्लोमेरुलर फिल्टरेशन रेट ‘ जी.आर.एफ. ‘ नामक जांच से चलता है । पेनकिलर्स या एंटीबॉयटिक दवाओं का सेवन डॉक्टर के परामर्श से ही करें । स्वचिकित्स ( सेल्फ मेडिकेशन ) से बचें । किडनी संबंधी तकलीफ होने पर शीघ्र ही डॉक्टर से परामर्श लें ।
पौष्टिक आहार :
गुर्दो संबंधी बीमारी से बचाव के लिए डाइट का ध्यान रखना बहुत ही जरूरी है इसलिए सभी को चाहिए कि खान – पान का पूरा ध्यान रखें ।
प्रोटीनः शरीर को ऊर्जा तीन स्त्रोतों से मिलती है जैसे कार्बोहाईड्रेट , प्रोटीन व वसा गुर्दो की खराबी में प्रोटीन को सीमित मात्रा में लिया जाता है इसलिए जरूरी है कि हाई बायोलॉजिकल गुणवत्ता वाले दूध व दूध से बनी वस्तुओं को लेना चाहिए । प्रोटीन 2/3 हिस्सा हाई बायोलॉजिकल गुणवत्ता वाले प्रोटीन स्त्रोत से होना चाहिए क्योंकि इसमें प्रोटीन की मात्रा कम होती है ।
पोटेशियमः गुर्दे की बीमारी में शरीर में पोटेशियम की मात्रा बढ़ जाती है जिससे हर्ट की समस्या बढ़ने की संभावना रहती है । शरीर में पोटेशियम की मात्रा कम होना भी घातक साबित होता है । इसलिए पोटेशियम का डाइट में सही मात्रा में होना आवश्यक है । सभी फल व सब्जियों में पोटेशियम ज्यादा मात्रा में होता है । इसलिए इन्हें लीचिग करके लेना चाहिए ।
पानी : गुर्दे की बीमारी में पानी की मात्रा पर विशेष ध्यान देना चाहिए । जो मरीज डाइलिसिस पर होते हैं , उन्हें रोजाना पेशाब की मात्रा को चैक करके पानी लेना चाहिए ।
नमक : डाइट में नमक का सही मात्रा में होना आवश्यक है । नमक की मात्रा बढ़ने से कई बार शरीर में सूजन आ जाती है ।
कुछ बचाव के और उपाय
• रोज 8-10 गिलास पानी पीए ।
• फल व सलाद ज्यादा खाएं ।
• रोजाना सैर करें ।
• 35 साल की उम्र के बाद साल में कम से कम एक बार ब्लड प्रेशर व शुगर की जांच अवश्य करवाएं ।
• ब्लड प्रेशर व डायबीटीज के लक्षण मिलने पर हर छह माह में पेशाब व खून की जांच अवश्य करवाएं ।
धूम्रपान न करें :
धूम्रपान गुर्दो से रक्त के प्रवाह को धीमा कर देता है । जब गुर्दे में कम रक्त पहुंचता है , तो ये सही ढंग से कार्य नहीं कर पाते धूम्रपान गुर्दे के कैंसर के खतरे को भी 50 प्रतिशत तक बढ़ा देता है ।
रक्त चाप पर निगरानी रखें :
कई लोगों को लगता है कि ब्लड प्रेशर का अनियंत्रित रहना सिर्फ दिल के लिए ही नुकसानदेह है , लेकिन सच तो यह है कि उच्च रक्तचाप गुर्दे की बीमारी का एक मुख्य संकेत हो सकता है । यदि आपका ब्लडप्रेशर अधिक है तो गुर्दे की पूरी जांच कराएं और अपनी जीवन – शैली में परिवर्तन लाएं , यदि आवश्यक हो । रक्तचाप को कम करने के लिए अपने डॉक्टर के परामर्श से ही दवा का सेवन करें ।
खुद को फिट रखें :
सप्ताह में कम से कम पांच बार घूमना , साइकिल चलाना या तैराकी जैसे सामान्य तीव्रता वाले व्यायाम करें । योग विशेषज्ञ के परामर्श से योगासन व प्राणायाम करें ।