लाहौल स्पीति (स्पीति वैली)| Spiti Valley in Hindi
चारों तरफ झीलों , दरों और हिमखंडों से घिरी , आसमान छूते शैल – शिखरों के दामन में बसी लाहौल स्पीति (Spiti Valley)घाटियां अपने जादुई सौंदर्य और प्रकृति की विविधताओं के लिए विख्यात हैं ।
हिंदू और बौद्ध परंपराओं का अनूठा संगम बनी हिमाचल की इन घाटियों में प्रकृति विभिन्न मनभावन परिधानों में नजर आती है कहीं आकाश छूती चोटियों के बीच झिलमिलाती झीलें हैं , तो कहीं बर्फीला रेगिस्तान दूर तक फैला नजर आता है ।
कहीं पहाड़ों पर बने मंदिर व गोम्पा और इनमें बौद्ध मंत्रों की गूंज के साथ – साथ वाद्ययंत्रों के सुमधुर स्वर एक आलौकिक अनुभूति से भर देते हैं , तो कहीं जड़ी – बूटियों की सौंधी – सौंधी और कहीं बर्फ- बादलों की सौंदर्य रंगत देखते ही बनती है ।
‘ लाहौल और स्पीति (Spiti Valley) एक- दूसरे से सटी महक अलग अलग घाटियों के नाम हैं , लेकिन प्रकृति की विविधताओं के बावजूद इनकी धार्मिक , सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि काफी हद तक समान है ।
अपनी ऊंचाई के कारण लाहौल स्पीति में सर्दियों में बहुत ठंड होती है और वहीं गर्मियों में मौसम बहुत सुहावना होता है
लाहौल स्पीति (स्पीति वैली) का इतिहास | History of Spiti Valley in Hindi
लाहौल के प्रारम्भिक शासक छोटे सामंत थे , जिन्हें जो ‘ पुकारा जाता था । सन् 400-500 में यारकंद सेनाओं ने लाहौल पर आक्रमण किए । 17 वीं शताब्दी में तिब्बती और मंगोल शासकों ने यहां हमले किए ।
1670 में जैसे ही लाहौल , लद्दाख से आजाद हुआ , चंबा के शासकों ने इस पर अधिकार जमा लिया । उपरांत यह क्षेत्र ‘ चंबा – लाहौल ‘ कहलाने लगा । कुल्लू के राजा विधि सिंह ने चंबा को छीनकर कुल्लू में मिला लिया ।
1840-41 में लाहौल सिखों के नियंत्रण में चला गया । चंबा तथा कुल्लू के शासकों द्वारा लाहौल पर बार – बार आक्रमणों से लाहौल 1846- 47 में चंबा – लाहौल तथा ब्रिटिश लाहौल में बंट गया ।
मणियों की घाटी :
स्पीति को ‘ मणियों की घाटी ‘ भी कहा जाता है स्थानीय भाषा में ‘ सी ‘ का अर्थ है – मणि और ‘ पीति ‘ का अर्थ – स्थान , यानि ‘ मणियों का स्थान ‘ हिमाचल की इस घाटी में चूंकि कई कीमती पत्थर व हीरे आज भी मिलते हैं , अतः इसे ‘ मणियों की घाटी ‘ का खिताब मिलना स्वाभाविक ही है ।
ऐसी धारणा भी है कि इस घाटी के शैल शिखरों में सैकड़ों वर्ष तक बर्फ की मोटी तहें जमी रहती हैं और इतनी लम्बी अवधि में बर्फ मणियों में बदल जाती है
यहां बहन बनती है दूल्हाः हमारे देश में यूं तो शादी – विवाह की क्षेत्रानुसार अलग – अलग परंपराएं हैं , लेकिन लाहौल स्पीति की शादी की यह परंपरा अपने आप में बिलकुल अलग है ।
लाहौल स्पीति (Spiti Valley) में जब दूल्हा किसी वजह से अपनी शादी में शामिल नहीं हो पाता तो यहां पर बहने ही सिर सेहरा सजा दुल्हन ले आती हैं । सदियों पुरानी यह परंपरा लाहौल घाटी में आज भी कायम है ।
घाटी में विवाह के दौरान महिलाओं को दूल्हा बनते देखा जा सकता है । भाई की अनुपस्थिति में बहनें दूल्हे का रूप धरकर बैंडबाजे के साथ अपने घर वधू को लेकर आती हैं ऐसा इसलिए होता है कि शादी के मुहूर्त पर भाई के घर पर न होने की सूरत में परंपरानुसार बहनें ही पारंपरिक तरीके से दूल्हा बनकर भाभी की विदाई कर लेकर आती हैं ।
कई बार तो दूल्हे के छोटे भाई भी दूल्हा बनकर अपनी भाभी को ब्याहने जाते हैं इतिहासकार कहते हैं कि यह सदियों पुरानी परंपरा है । लाहौल की बड़ी शादी , कूजी विवाह और छोटी शादी की परंपरा के साथ ही यह परंपरा आज भी कायम है
लाहौल स्पीति (स्पीति वैली) के दर्शनीय स्थल | Spiti Valley ke Tourist Place in Hindi
तबो –
तबो मठ को स्पीति घाटी में 996 में खोजा गया । यह स्थान बहुत ही सुंदर है यह पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है बताया जाता है कि यह मठ हिमालय पर्वतमाला के सब से पुराने मठों में से एक है । यहां की सुंदर पेंटिंग्स , मूर्तियां और प्राचीन ग्रंथों के अलावा दीवारों पर लिखे गए शिलालेख यात्रियों को बहुत आकर्षित करते हैं ।
धनकरः
यह मठ धनकर गांव में है , जोकि हिमाचल के स्पीति क्षेत्र में समुद्र तल से 3,890 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है । यह जगह तबो और काजा दो प्रसिद्ध जगहों स्थित धनकर , दुनिया की ऐतिहासिक विरासतों में के बीच में है । स्पीति और पिन नदी के संगम पर भी स्थान रखता है ।
काजा
काजा स्पीति घाटी का उप संभागीय मुख्यालय है । यह स्पीति नदी के बाएं किनारे पर खड़ी चोटी की तलहटी पर स्थित है । काजा में रेस्ट हाउस और रहने के हिक्किम , कोमोक और लागिया मठों पर घूमने जाया लाहौल स्पीति आने वाले लोगों के लिए घूमने के स्थान की कमी नहीं है ।
यहां किब्बर , गेहे , पिन वैली , लिंगटी लिए कई छोटे – छोटे होटल बने हुए हैं । यहां से वैली , कुजम पास और चंद्रवाल कुछ ऐसी जगहें हैं , जा सकता है ।
लाहौल स्पीति (Spiti Valley) के अन्य दर्शनीय स्थल जहां जाए बिना स्पीति की यात्रा पूरी नहीं होती ।
किब्बरः
किब्बर हिमाचल प्रदेश के दुर्गम जनजातीय क्षेत्र स्पीति घाटी में स्थित एक गांव है । किब्बर को हिमाचल के सबसे ऊँचे गांवों में शुमार किया जाता है ।
यह गांव काफी उंचाई पर बसा है यानि एवरेस्ट की लगभग आधी उंचाई । इसे ‘ शीत मरुस्थल ‘ के नाम से भी जाना जाता है ।
गोपाओं और मठों की इस धरती में प्रकृति के विभिन्न रूप परिलक्षित होते हैं कभी घाटियों में फिसलती धूप देखते ही बनती है तो कभी खेतों में झूमती हुईफसलें मन को आकर्षित करती हैं ।
कभी यह घाटी बर्फ की चादर में छिप सी जाती है , तो कभी बादलों के टुकड़े यहां के खेतों और घरों में बगलगीर होते दिखते हैं । किब्बर की घाटी में कहीं- कहीं पर सपाट बर्फीला रेगिस्तान है , तो कहीं हिमशिखरों में चमचमाती झीलें नजर आती हैं
पिन वैली
पिन घाटी राष्ट्रीय उद्यान स्पीति की घाटी में स्थित हिमाचल प्रदेश राज्य का एकमात्र राष्ट्रीय उद्यान है , जो एक ठंडे रेगिस्तान क्षेत्र में स्थित है । यह 675 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला है ।
यह पार्क 1987 में स्थापित किया गया था । पार्क जानवरों और पक्षियों की लगभग 20 प्रजातियों का घर है और इसे लुप्तप्राय हिम – तेंदुए के संरक्षण के लिए खास तौर पर जाना जाता है ।
लाहौल स्पीति में पाए जाने वाले जानवर:
यहाँ पाये जाते हैं , उनमें पिका , भराल , चुकोर , नेवला , गोल्डन ईगल , औबेक्स , हिमालय चाफ ( एक प्रकार का नेवला ) , लाल लोमड़ी ,बर्फ का मुर्गा , नौसिकुआ , दाढ़ी वाले गिद्ध , और रैवेन शामिल हैं । पिन वैली की वनस्पति लगभग 400 प्रजातियों के पौधों और जड़ी बूटियों और मसालों के साथ मिलकर बनती है ।
यहाँ पाई जाने वाली जड़ी – बूटी में बहुत सारे औषधीय गुण है जिन्हे दवा तैयार करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है । यात्रियों को पिन वैली पार्क के निदेशक की अनुमति प्राप्त करने के उपरान्त ही इस पार्क में प्रवेश मिलता है ।
चंद्रतालः
चंद्रताल एक ऐसी सैरगाह है , जहां सैलानियों को ट्रैकिंग का थोड़ा सा एडवेंचर और कैम्प होलिडे का ढेर – सा रोमांच मिलता है ।
चंद्रताल जाने के लिए रास्ता मनाली होकर जाता है , इसलिए सैलानी पहले मनाली ठहर कर आधी यात्रा की थकान दूर कर सकते हैं चंद्रताल की यात्रा के साथ ट्रैकिंग का एडवेंचर भी जुड़ जाता है ।
चारों ओर बिखरी प्राकृतिक छटा के चलते सैलानियों को तनिक भी थकान नहीं होती । यात्रा के लिए पर्याप्त ऊनी वस्त्र , रेनकोट , विंडचीटर , ग्लव्स , केप आदि अवश्य ले जाने चाहिए । चंद्रताल जाने का उपयुक्त समय जुलाई से सितम्बर तक होता है ।
लाहौलः
कुछ लोग इसे ‘ हिमालयन स्कॉटलैंड ‘ कहते हैं वैसे लाहौल को लैंड विद मैनी पासेस ‘ भी कहा जाता है क्योंकि लाहौल से दुनिया का सब से ऊंचा हाईवे गुजरता है जो इसे मनाली , लेह , रोहतांग ला .. बारालाचा ला , लचलांग ला और तंगलांग ला से जोड़ता है ।
नदियां
हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं से विरे लाहौल में जो शिखर दिखाई देते हैं , उन्हें ‘ गयफांग ‘ कहा जाता है । साथ ही , यहां चंद्रा और भागा नाम की दो नदियां बहती हैं ।
इन्हें यहां का जलस्रोत माना जाता है । चंद्रा नदी को यहां के लोग ‘ रंगोली ‘ कहते हैं । इस के तट पर खोक्सर , सिसु , गोंढला और गोशाल चार गांव बसे हुए हैं , जबकि भागा नदी केलौंग और बारालाचा से बहती हुई चंद्रा में मिल जाती है । जब ये दोनों नदियां तांडी नाम की नदी में मिलती है , तो इसे ‘ चंद्रभागा ‘ कहा जाता है ।
अन्य प्रमुख स्थल
लाहौल के आसपास घूमने के लिए
1)केलौंग
2)गुरुकंटाल मठ
3)करडांग
4)शाशुर
5)तैयुल
6)गेमुर
7)सिसु और गोंढाल
जैसे प्रमुख स्थल , जो किसी न किसी विशेषता की चादर ओढ़े हुए हैं
कैसे पहुंचे
यहां कोई एयरपोर्ट नहीं है यूंटारहवाई अड्डे के रास्ते से लाहौल पहुंचा जा सकता है । हवाई अड्डे से लाहौल स्पीति तक पहुँचने के लिए , टैक्सियों और कैब को किराए पर लिया जा सकता है ।
लाहौल में रेलवे स्टेशन भी नहीं है पर्यटक पास में ही स्थित जोगिंदर नगर रेलवे स्टेशन से लाहौल तक पहुंचते हैं यह एक छोटी लाइन है ।
दूर से आने वाले पर्यटक चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन पर उतरें और वहां से बस या कैब से लाहौल तक आएं । सड़क मार्ग से लाहौल आने के कई रास्ते है जिनमें से लाहौल रोहतांग दर्श , कुंजुम दर्रा आदि प्रमुख हैं ।
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